आपने भी सुना होगा "खाना छोड़ो मत, प्लेट साफ करो, सुन्नत है"
देखिए, प्लेट साफ करने की सुन्नत से पहले भी एक सुन्नत है.. वो ये कि खाना प्लेट में उतना ही लीजिए जितना आप खा सकते हो.. या आप कन्फर्म हो कि आपके छोड़े दो निवाले उसी जगह पर बैठकर कोई और खा लेगा। जैसे औलाद है, भाई बहन है, बीवी है, शौहर है, दोस्त है, शागिर्द है.. ये एक दूसरे का छोड़ा खाते हैं। वहाँ ये बात भी नही कही जाती कि थाली साफ करो सुन्नत है। क्योंकि जानते हैं कि साफ तो होगी ही।
पहले प्लेट में ज़्यादा खाना उंडेल लेना फिर उसे जबरन भकोसना, उसके बाद ये सोचना कि सुन्नत अदा हो गई है। ऐसे सुन्नत अदा नहीं होती बल्कि खाने की तौहीन होती है। थाली साफ करने की सुन्नत की शुरुआत खाना लेने के साथ हो जाती है। उसके बाद जो कुछ ओवरलोड होता है वो मनुहार है, हवस है।
"शऊर" पैदा करें अपने आप में, शऊर से "सलीका" उपजेगा।
सलीके के बाद की चीज़ "तरीका" है। "तरीके" के बाद "अदब" और अदब के बाद इल्म का नम्बर आता है बगैर अदब का इल्म शैतान का इल्म है।