बुरैदा असलमी (रज़ि०) से रिवायत है कि नबी (सल्ल०) ने एक शख़्स को इन कलिमात के साथ (اللهم إني أسألك بأني أشهد أنك أنت الله لا إله إلا أنت الأحد الصمد الذي لم يلد ولم يولد ولم يكن له كفوا أحد) 'ऐ अल्लाह! मैं तुझसे माँगता हूँ इस तौर कि मैं तुझे गवाह बनाता हूँ इस बात पर कि तू ही अल्लाह है। तेरे सिवा कोई माबूदे-बर-हक़ नहीं है। तू अकेला (माबूद) है। तू बेनियाज़ है। (तू किसी का मोहताज नहीं तेरे सब मोहताज हैं) (तू ऐसा बेनियाज़ है) जिसने न किसी को जना है और न ही किसी ने उसे जना है और न ही कोई उसका साथी हुआ है,' दुआ करते हुए सुना तो फ़रमाया: क़सम है उस रब की जिसके क़ब्ज़े में मेरी जान है! उस शख़्स ने अल्लाह से उसके सबसे बड़े नाम के वसीले से माँगा है कि जब भी उसके ज़रिए दुआ की गई है उसने वो दुआ क़बूल की है और जब भी उसके ज़रिए कोई चीज़ माँगी गई है उसने दी है। ज़ैद (रावी) कहते हैं: मैंने ये हदीस कई बरसों बाद ज़ुहैर-बिन-मुआविया से ज़िक्र की तो उन्होंने कहा कि मुझसे ये हदीस अबू-इस्हाक़ ने मालिक-बिन-मिग़वल के वास्ते से बयान की है। ज़ैद कहते हैं: फिर मैंने ये हदीस सुफ़ियान सौरी से ज़िक्र की तो उन्होंने ये हदीस